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पीर नवाज़

राजू शर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9388
आईएसबीएन :9788126728091

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

‘एक प्रहार, एक अजूबे की तरह था यह खयाल : जिन कहानियों को मैं यथार्थ का रूपक सच, उसका तत्त्व मान रहा था, कहीं ऐसा तो नहीं था कि यथार्थ की रविश, उसका व्यवहार उन्हें सच बना रहा है ! यह सोचना जलते कोयलों पर चलने की तरह था ! यह कैसा न्याय, कौन सा प्रतिशोध है कि मैंने जो भी लिखा है, या लिख रहा हूँ, वह सिर्फ रचना तक सीमित नहीं, वह आगे बढ़कर घटता भी है, घट रहा है !’

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